हाल ही में, बिहार की राजनीति में राहुल गांधी की सक्रियता और महागठबंधन द्वारा आहूत ‘बिहार बंद’ ने काफी सुर्खियां बटोरी हैं। यह ‘बिहार बंद’ मुख्य रूप से मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान के विरोध में बुलाया गया था, जिसमें विपक्षी दलों ने धांधली का आरोप लगाया है। राहुल गांधी, जो लोकसभा में विपक्ष के नेता भी हैं, इस आंदोलन में शामिल हुए और उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ मिलकर चक्का जाम का नेतृत्व किया।
विरोध का कारण: मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी
महागठबंधन का आरोप है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं बरती जा रही हैं, जिससे बड़ी संख्या में योग्य मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं या उन्हें जोड़ने से रोका जा रहा है। तेजस्वी यादव ने इसे “मताधिकार छीनने की साजिश” करार दिया है, और यह दावा किया है कि सत्ताधारी दल अपनी हार को देखते हुए ऐसी साजिशें रच रहा है। यह विरोध प्रदर्शन केवल एक दिन का बंद नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक व्यापक रणनीति है जो आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
राहुल गांधी की बढ़ती सक्रियता और बिहार का महत्व
पिछले कुछ महीनों में राहुल गांधी की बिहार में सक्रियता काफी बढ़ गई है। वे लगातार बिहार के दौरे कर रहे हैं और विभिन्न सामाजिक वर्गों और मुद्दों पर अपनी बात रख रहे हैं। उनकी “भारत जोड़ो यात्रा” और “भारत जोड़ो न्याय यात्रा” के बाद, उनका ध्यान अब राज्य-स्तरीय आंदोलनों पर भी केंद्रित हो गया है। बिहार जैसे महत्वपूर्ण चुनावी राज्य में उनकी उपस्थिति कांग्रेस और महागठबंधन के लिए एक बड़ा राजनीतिक संदेश देती है।
राहुल गांधी ने पहले भी बिहार में संविधान सुरक्षा सम्मेलनों, “पलायन रोको, नौकरी दो” यात्राओं और विभिन्न पिछड़ा वर्ग सम्मेलनों में भाग लिया है। उनकी यह सक्रियता बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने और महागठबंधन के चुनावी आधार को विस्तृत करने के प्रयासों का हिस्सा है। वे युवाओं, दलितों और पिछड़े वर्गों के मुद्दों को जोर-शोर से उठा रहे हैं, जो बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं।
आगे की राह और चुनौतियां
‘बिहार बंद’ के माध्यम से महागठबंधन ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है और यह दिखाया है कि वे चुनावी मुद्दों पर सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। राहुल गांधी की भागीदारी ने इस आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित कराया है। हालांकि, चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। विपक्षी एकता को बनाए रखना, जनता के बीच अपने संदेश को प्रभावी ढंग से पहुंचाना और चुनावी रणनीति को सफलतापूर्वक लागू करना उनके लिए महत्वपूर्ण होगा।
यह ‘बिहार बंद’ सिर्फ एक विरोध प्रदर्शन से कहीं अधिक है; यह बिहार की बदलती राजनीतिक गतिशीलता और राहुल गांधी के एक अधिक मुखर और सक्रिय नेता के रूप में उभरने का संकेत है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह आंदोलन आगामी विधानसभा चुनाव में क्या प्रभाव डालता है और राहुल गांधी बिहार की राजनीति में अपनी छाप किस हद तक छोड़ पाते हैं।